SWAMI NITYANAND
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अनगिनत चक्कर पर चक्कर खा रहा आदमी
राह बिन मंजिल की चलता जा रहा है आदमी
आकदमी की आदमियत आदमी से छिन गयी
प्रगति पथ के राह रोड़ी प्रगति ही है बन गयी
अब प्रकृति की नियत कुछ यूँ बदलती जा रही
बढ़ रहे हैं आदमी कि आदमियत जा रही
कौन जाने कल किसी पथ पर मिलें कुछ आदमी
पर आदमी को मिलेगा आदमी में आदमी
तब और कब किस को कहाँ किसमे मिलेगा आदमी
ईश में अवनीश में अधनीश में न आदमी
तो बांध ले इस बात को तू गांठ में ए आदमी
जब मिलेगा आदमी में ही मिलेगा आदमी
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